दुःख

दुःख
किसी रोज
दुःख आए न चौखट
द्वार खटखटाये
डोर बैल बजाए
तो आने देना भीतर,
हड़बड़ाना नही
पास बैठाना
चाय-पानी-नाश्ता पूछना
हालचाल जानना उसके
बातें करना,
पूछना किसी शाम
दारू पीओगे ?
साथ में वेज लोगे या नॉन-वेज?
रात्रि में ठीक से सोने के लिये
अलग बेड लगा दूँ?
याकि अलग दे दूं कमरा,
थक जाते होंगे न दिन भर काम करते
कुछ हेल्थ टॉनिक दे दूं?
किसी रोज
दुःख आये न चौखट
तो आने देना भीतर
हड़बड़ाना नहीं
दुःख की आंख में आंख डालकर बातें करना
दोस्ती कर लेना उससे
वही बताएगा किसी रोज
दुःख की काट
या दुःख के साथ जीने की कला
ईश्वर के भेद बताएगा वह
अध्यात्म के रहस्य बताएगा
बाहर के शोर में, भीतर मौन हो जाना सिखाएगा
सिखाएगा मौन के बाद की शान्ति ,
दुख
ईश्वर का खोया बच्चा है
किसी रोज
दुख आये न चौखट
तो आने देना भीतर
हड़बड़ाना नही
दुःख से इतनी आत्मीयता से मिलना गले
कि दुःख अपने दुःख सुनाने लगे
रोने लगे जार जार
देखना
तुम किसी रोज़
दुःख से बड़े हो जाओगे,
ईश्वर के बच्चे को पालना
ईश्वर हो जाना होता है।
वीरेंदर भाटिया