सुरों की आराधना में सजा रागायन का स्थापना दिवस: श्रद्धा, समर्पण और संगीत का अद्भुत समागम

 

ग्वालियर। सुरों की नगरी ग्वालियर में रविवार की संध्या–बेला उस वक्त विशेष बन गई, जब प्रतिष्ठित संस्था रागायन के स्थापना दिवस पर सिद्धपीठ श्री गंगादास जी की बड़ी शाला में एक विशिष्ट संगीत सभा का आयोजन हुआ। यह दिवस इसलिए भी अनुपम रहा क्योंकि इसी तिथि पर सिद्धपीठ के सत्रहवें महंत पूज्य स्वामी रामेश्वरदास जी की पुण्यतिथि भी थी। अतः वातावरण में श्रद्धा, समर्पण और सौम्य संगीत का अनूठा संगम स्वतः ही घुल गया। सुरों की ऐसी गर्माहट छाई कि जाड़े की सर्द हवा भी मानो द्वार पर ठिठक गई।

कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप–प्रज्ज्वलन और गुरुपूजन के साथ हुआ। इस पावन अवसर पर मुख्य अतिथि निर्मोही अखाड़े के सलाहकार डॉ. राज सिंह, अध्यक्षता कर रहे रागायन अध्यक्ष एवं शाला के पीठाधीश्वर स्वामी रामसेवक दास जी महाराज, तथा विशिष्ट अतिथि आबकारी उपायुक्त श्री संदीप शर्मा की गरिमामयी उपस्थिति रही। सभागार में अनंत महाजनी, डॉ. वीणा जोशी, ब्रह्मदत्त दुबे सहित कई संगीत–रसिकों की उपस्थिति ने वातावरण को और भी मंगलमय बना दिया।

संगीत संध्या का शुभारंभ ग्वालियर के युवा और प्रतिभाशाली कलाकार हेमांग कोल्हटकर ने राग श्याम कल्याण के गायन से किया। उन्होंने क्रमशः एकताल की विलंबित बंदिश “जियो मेरी लाल”, तीनताल की मध्यलय बंदिश “सावन की सांझ”, तथा द्रुत एकताल की बंदिश “बेला सांझ की” प्रस्तुत कर राग की मधुर राग-रंजक लहरियाँ फैलाईं। उनके स्वरों में सहज माधुर्य और विचारपूर्ण मनोभाव ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। तबले पर डॉ. विनय विंदे और हारमोनियम पर डॉ. अनूप मोघे की संगीतमय संगत ने प्रस्तुति को और सजीव बनाया।

दूसरी प्रस्तुति में राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. श्याम रस्तोगी ने राग रागेश्री में सुमधुर सितार वादन प्रस्तुत किया। आलाप, जोड़ और झाला की शांत स्वरलहरियों से शुरू हुआ उनका वादन धीरे-धीरे दो गंभीर और परिपक्व रचनाओं में रूपांतरित हुआ—पहली धमार ताल में निबद्ध विलंबित रचना और दूसरी तीनताल में द्रुत रचना। उनकी उंगलियों से झरते स्वरों में रागदारी की शुद्धता और चैनदारी स्पष्ट झलकती रही। तबले पर संजय राठौर ने उत्कृष्ट संगत से वादन को चार चाँद लगा दिए।

सभा का समापन दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक एवं देश के युवा खयाल गायक डॉ. अविनाश कुमार के गायन से हुआ। उन्होंने राग पूरियों कल्याण में संक्षिप्त आलाप के साथ राग का उज्ज्वल स्वरूप सामने रखा। एकताल की विलंबित बंदिश “आज सुबना” और तीनताल की द्रुत बंदिश “मोरे घर आजा” में उन्होंने तानों, आलापों और मनोयोगपूर्ण विस्तार से अद्भुत रसधारा प्रवाहित की। अंत में राग भैरवी की रचना “भवानी दयानी” से उन्होंने संगीत–संध्या को आध्यात्मिक ऊँचाई पर पहुंचाया। उनके साथ तबले पर वरिष्ठ वादक डॉ. मुकेश सक्सेना, तथा हारमोनियम पर श्री संजय देवले ने मधुर संगत की।
अंत में रागायन के उपाध्यक्ष श्री अनंत महाजनी ने सभी कलाकारों, अतिथियों और रसिकों के प्रति हृदय से आभार व्यक्त किया। रागायन की यह विशिष्ट संगीत सभा केवल कार्यक्रम नहीं, बल्कि भक्ति, परंपरा और भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक पावन अभिव्यक्ति बनकर स्मृतियों में बस गई।