भगवान पद्मनाभन स्वामी की नगरी तिरुवन्थपुरम में भाजपा की दस्तक, बहुमत से एक कदम दूर एनडीए

तिरुवन्थपुरम नगर निगम 21 पलक्कड नगर पालिका में 25 पार्षद जीते

राजनैतिक पंडित भले केरल ही नगरीय और ग्रामीण निकायों के चुनाव नतीजों से कांग्रेस की सत्ता में वापसी का संकेत माने लेकिन भाजपा ने जिस दम खमसे केरल के सबसे बड़े नगर निगम ही नही बल्कि केरल की राजधानी को जीतकर यूडीएफ और एलडीएफ के कर्ताधर्ताओं के ये संकेत दे दिया है। कि हमारी जमीन तैयार है ।
गत 5 वर्षों में भाजपा केरल के कई सेवानिवृत अधिकारियों को शनै शनै अपने साथ जोड़ने में सफल रही है। मलायालम फिल्म इंडस्ट्री की हस्ती ग्लेमर्स होकर भींड़ तो जुटा सकती हैं लेकिन वोट नहीं । जबकि प्रशासनिक सेवा में रहे व्यक्ति आम आदमी की नब्ज को अच्छी तरह समझते हैं। उसका ही सुपरिणाम है कि मोदी जी के अवसान से पूर्व भाजपा ने धूर दक्षिणी प्रदेश की राजधानी में अपना झंड़ा गाढ़ने में कामयाबी प्राप्त करली है।
यहां एकबात हम कहना चाहेंगे की तिरुवन्थपुरुम नगर निगम  की21 वार्डों में  जीत अकेले भाजपा की मानने की गलती ना करें। यदि कांग्रेस के विध्न विनाशक और तिरुवन्थपुरम के सांसद शशि थरुर ने अंदर खाने पूरी मदद ना कि होती तो ये जीत मिलना आसान नहीं होती ।
इसके साथ पल्लकड नगर पालिका में 25 वार्डों में जीत मिली है।
विधानसभा चुनाव के पूर्व हुये नगरीय और ग्रामीण निकायों के चुनाव नतीजों से केरल की राजनीतिक हालत का ठीक ठाक जायज़ा मिल गया है। और वह अपेक्षित दिशा में ही है । सीपीएम के नेतृत्व का लैफ्ट फ़्रंट अब सत्ता से जाता दिख रहा है और कांग्रेस की अगुवाई में चल रहा संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा इस बार कुर्सी पर बैठने की तैयारी में है।
इसमें कुछ भी अनपेक्षित नहीं है सिवाय एक सम्भावना के कि अगले यानी २०३१ के चुनाव में एलडीएफ ( वाम मोर्चा ) या कहिये कि सीपीएम भारतीय राजनीति से अंतिम तौर पर अपनी विदाई की तैयारी कर लेगी । उच्चवर्णीय और बूढ़े नेतृत्व का युग अब बीत रहा है। पोंगापंथी विचार पंथ सम्प्रदाय धर्म में तो चल सकता है पर राजनीति में नहीं । साम्यवाद सौ बरस भी जीवित रह गया तो उसका श्रेय मजदूर किसान युवा आनुषंगिक संगठनों को दिया जाना चाहिये । यह कोई शक नहीं कि साम्यवादी नेतृत्व अपनी निजी जीवन में अति अनुशासित ,ईमानदार ,वैचारिक, अपरिग्रही और सादा जीवन व्यतीत करते रहे पर राजनीति में असंगत होने के लिये इस सबसे काम नहीं चलता है!
केरल सबसे पढ़ा लिखा और दलगत विचारधाराओं पर बहस मुबाहिसों को सार्वजनिक जीवन में स्थान देने वाला राज्य है । यहीं सबसे पहले समुद्रपार से इस्लाम आया और पुर्तगाली ईसाई फ़ौजें जिन्होनें अंततः गोवा में अपना राज जमाया और करीब साढ़े पांच सौ साल जमे रहे , किसी भी भी मुग़ल या अन्य औपनिवेशिक ताक़तों से ज़्यादा ।
केरल इतना छोटा राज्य है कि कि पूरे देश की राजनीति पर कोई खास प्रभाव नहीं डाल सकता लेकिन एकाध प्रभावशाली राजनेता को जीवनशक्ति दे सकता है।
केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दशकों से अपना संगठन जमाने के लिये जूझ रहा है । यह प्रक्रिया न सिर्फ़ लम्बी रही है वरन सीपीएम और संघ कार्यकर्ताओं के बीच अक्सर ख़ूनी निजी मुठभेड़ें होती रहीं हैं जिनमें दोनों ओर के सैकड़ों कार्यकर्ता अब तक मारे गये हैं। यह शायद पहला अवसर हो सकता है जब संघ यानी भाजपा केरल की विधानसभा में अपना खाता खोल सकेगी । ऐसा तमिलनाडु में भी सम्भव है जहॉं अभी तक भाजपा शून्य पर ही रही है। दक्षिण के दोनों राज्यों में भाजपा की मामूली उपस्थिति भी बड़ा संकेत देगी खास तौर पर कांग्रेस सीपीएम एवं अन्य दलों के लिए जो सीख सकते हैं कि धीरज , विचार प्रतिबद्धता, धारावाहिकता और सांगठनिक सतत प्रयासों का नतीजा एक दिन आता ही है । भाजपा अपने विस्तार के लिये नये और बाहरी लोगों को लेने में नहीं हिचकती जबकि कांग्रेस अपनी सिकुड़ती स्थिति को और कमज़ोर करने के लिये लगातार अपने ही कार्यकर्ताओं नेताओं को किसी न किसी बहाने भगाती भी रहती है और जमीनी कार्यकर्ताओं के बजाये चिकने चिपुडे अंग्रेजीदॉं आभिजात्य लोगों को पसंद करती रही है जो अपने स्वार्थ के लिये पार्टी छोडनें में दो मिनिट भी नहीं लगाते हैं।। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही भ्रष्टाचार से परहेज नहीं करते पर भाजपा संगठन भी बढ़ाती रहती है जबकि कांग्रेसी निजी सम्पत्ति का विस्तार मात्र करते हैं ।