देव आनंद 110 फिल्मों हीरो निर्देशक की भूमिकाए सत्तर के दशक में जन्मे लोगों में ताजा हैं
ग्वालियर ।भारतीय सिनेमा जगत के इतिहास में सर्वाधिक प्रिय ,करिशमाई,और निपुण अभिनेताओं में से तथा सर्वाधिक कल्पनाशील और अग्रणीय निर्देशकों में एक थे ।देव आनंद पांच दशकों में 110 फिल्मों में अग्रणीय भूमिका रहे। देवानंद का नाम एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने सिर्फ अपने सदाबहार अभिनय से बल्कि फिरने फिल्म निर्माण और निर्देशन से भी दर्शकों के बीच अपनी विशेष पहचान बनाई थी।
पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यम वर्ग की परिवार में 26 सितंबर 1923 को जन्मे धर्मदेव किशोरी माल आनंद उर्फ देवानंद ने अंग्रेजी साहित्य में अपनी स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से पूरी की देवानंद इसके आगे भी पढ़ना चाहते थे लेकिन उनके पिता ने साफ शब्दों में कह दिया उनके पास उन्हें पढ़ने के लिए पैसे नहीं है यदि वह आगे पढ़ना चाहते हैं तो नौकरी कर ले देव आनंद निश्चय किया यदि नौकरी करनी है तो क्यों ना फिल्म इंडस्ट्रीज में कितना ताजमहल जाए वर्ष 1943 में वे अपने सपनों को साकार करने के लिए जब देवानंद मुंबई पहुंचे तब उनके पास जब में मात्र ₹30 दे और रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था देवानंद यहां पहुंचकर रेलवे स्टेशन के समिति उसे कमरे में उनके साथ तीन अन्य लोग भी रहते थे देवानंद की तरह ही फिल्म इंडस्ट्रीज में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे जब काफी दिन यूं ही गुजर गए तो देवानंद सोचा यदि उन्हें मुंबई में रहना है तो जीवन यापन के लिए नौकरी करनी पड़ेगी प्रयास के बाद मिलिट्री सेंसर ऑफिस में लिपि की नौकरी मिल गई या उन्हें सैनिकों की छुट्टियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़कर सुनाना होता था मिलिट्री सेंसर ऑफिस में देव आनंद को 165 रुपए मासिक वेतन मिलता था जिसमें से 45 रुपए वह अपने परिवार के घर के लिए भेज देते थे लगभग 1 वर्ष तक मिलिट्री संसार में नौकरी करने के बाद वह अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास चले गए जो उसे समय भारतीय जन नाटय संघ जुड़े हुए थे। उन्होंने देवानंद को भी एकता में शामिल कर लिया इसी बीच देव आनंद नाटकों में छोटे-मोटे रोल किये। वर्ष 1945 में हम एक हैं से बताओ अभिनेता देवानंद ने करियर की शुरुआत की वर्ष 1948 में जिद्दी उनके हीरो के रुप से सफल फिल्म थी। फिल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रख दिया और नवकेतन बैनर की स्थापना की। देव आनंद की बतौर निर्देशक पहली फिल्म 1970 में प्रेम पुजारी थी जो खास सफल नहीं रही। इसके बाद 1971 में हरे रामा हरे कृष्ण का निर्देशन किया जो बॉक्स ऑफिस पर सफल रही। उसके बाद हीरा पन्ना ,देश परदेस जैसी सफल फिल्मों का निर्देशन किया । देव आनंद की आखरी फिल्म चार्जशीट थी जिसमें उन्होने वकील की मुख्य भूमिका निबाही यही नहीं फिल्म का निर्देशन भी किया उनकी फिल्म 2011 में रिलीज हुई थी।
देव आनंद को भारत सरकार ने 2001 में तीसरे सर्वोच्च सम्मान पद्मभूषण, सन 2002 में दादासाहब फाल्के पुरुस्कार ,चार फिल्म फेयर किशोर कुमार सम्मान जैसे खई पुरुस्कार मिले । न्यूयार्क विधान सभा ने प्रशस्ति पत्र और स्टार ऑफ दी मिलेनियम जैसे अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कारों से सम्मानित हुए।यही नहीं तत्कालीन भारत सरकार ने 2013 एक डाक टिकिट भी जारी किया ।

