पुलिस और प्रशासन ने माफिया को हटाकर खुद कोल माफिया का चोला पहना-बाबू लाल मरांडी

धनबाद। झारखंड में  कोयले का काला साम्राज्य कोई नई बात नहीं है, लेकिन मौजूदा सरकार में इसका चरित्र पूरी तरह बदल गया है। पहले माफिया चोरी करता था और पुलिस को कमीशन देता था। आज स्थिति यह है कि पुलिस और प्रशासन ने माफिया को हटाकर खुद माफिया का चोला पहन लिया है। अब साझेदारी नहीं, बल्कि पुलिस अधिकारी सीधे तौर पर कोयला खदानें चला रहे हैं।

पत्रकारों को संबोधित करते हुए बाबूलाल मरांडी ने कहा कि  हम उस सिंडिकेट का पर्दाफाश कर रहे हैं जो धनबाद में कोड-वर्ड्स के जरिए चल रहा है। असली अपराधी पकड़े न जाएं, इसलिए गुर्गों को कोड नेम दिए गए हैं। मैं आपको सिलसिलेवार बताता हूँ कि कौन सी साइट, किस कोड नेम से, किस अधिकारी के संरक्षण में चल रही है। सबसे पहले ‘भौरा साइट’, जिसे ‘अरविंद’ और ‘करण’ नाम के कोड वर्ड वाले दो लोग चला रहे हैं। ये दोनों सीधे तौर पर धनबाद एसएसपी प्रभात कुमार के आदमी हैं। दूसरी है ‘कुजामा साइट’। यहाँ तीन कोड वर्ड काम कर रहे हैं—’आकाश’, ‘मनीष’ और ‘अजय’। इसमें ‘आकाश’ एसएसपी धनबाद का आदमी है, ‘अजय’ कुंभनाथ सिंह का आदमी है और ‘मनीष’ मुकेश सिंह का आदमी है। तीसरी ‘पंचेत साइट’, जिसे ‘अंजनी’ नाम के कोड वर्ड से चलाया जा रहा है। यह व्यक्ति पंकज मिश्रा का आदमी है। चौथी ‘निरसा साइट’, जिसे संजय सिंह चला रहा है। यह उसका असली नाम है और यह भी धनबाद एसएसपी का खास आदमी है। पाँचवी ‘गोपालीचक’ और ‘बायसबारा साइट’, जिसे कौशल पांडे चला रहा है। यह भी एसएसपी धनबाद का ही आदमी है। हद तो तब हो गई है जब ‘बरोरा’, ‘तेदुलमारी’, ‘जमुनिया’ और ‘रामकनाली’ जैसी बड़ी साइट्स को कोई गुर्गा नहीं, बल्कि बाघमारा के डीएसपी पुरुषोत्तम सिंह खुद चला रहे हैं। एक डीएसपी सीधे तौर पर कोयला खनन करवा रहा है। धनबाद में इस वक्त अवैध व्यापार के तीन केंद्र बन चुके हैं—बाघमारा, निरसा और झरिया। इनके अंतर्गत 25 थाने और 40 अवैध साइट्स चल रही हैं। यहाँ से हर दिन 150 से 200 ट्रक, यानी करीब 10,000 टन अवैध कोयला बंगाल और लोकल मंडियों में खपाया जा रहा है। यह पूरा खेल एक व्यवस्थित पदानुक्रम  में चल रहा है।  सत्ता का शीर्ष केंद्र ‘महाराजा’ की भूमिका में है। एसएसपी महोदय ‘प्रधान सेनापति’ हैं और डीसी साहब ‘महामंत्री’ हैं। इन सभी का प्रॉफिट शेयर फिक्स है। धनबाद एसएसपी ने वसूली का एक सेंट्रलाइज्ड सिस्टम बना रखा है। जिले के थानेदार, डीएसपी, सीओ से लेकर माइनिंग ऑफिसर तक—सबका हिस्सा तय है। इस वसूली सिंडिकेट के राइट हैंड़ हैं बाघमारा डीएसपी पुरुषोत्तम सिंह और लेफ्ट हैंड़ हैं इंस्पेक्टर अजीत भारती। ये दोनों मिलकर मलाईदार थानों की बोली लगाते हैं और जो सबसे ज्यादा बोली लगाता है, उसे ही थानेदारी मिलती है। डीएसपी पुरुषोत्तम सिंह, जो पूर्व में मुख्यमंत्री की सुरक्षा में रहे हैं, अपनी उस पहुंच का धौंस जमाकर वसूली करते हैं। इनका खौफ इतना है कि सभी माइनिंग साइट्स में इन्होंने 50% की पार्टनरशिप जबरन ले रखी है। इसमें पूर्व डीजीपी अनुराग गुप्ता की भूमिका ‘संरक्षक’ की रही है। जब वे सीआईडी और डीजीपी  दोनों प्रभार में थे, तो दोनों पदों की अलग-अलग फीस वसूलते थे। यह पैसा बाघमारा डीएसपी उन तक पहुंचाते थे। गंभीर बात यह है कि उनके हटने के बाद आज भी ‘डीजीपी’ के नाम पर वसूली जारी है। अब यह पैसा किस डीजीपी को जा रहा है, यह एक बड़ी जांच का विषय है। अंत में, इस लूट की कीमत आम मजदूरों को जान देकर चुकानी पड़ रही है। एसएसपी साहब ने ‘हाउस’ में कुछ ज्यादा ही बड़ा कमिटमेंट कर दिया है, जिसे पूरा करने के लिए नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। बरसात में कई मजदूरों की खदान में दबकर मौत हुई, लेकिन प्रशासन ने पैसे और पावर के दम पर उनका मुँह बंद करा दिया और खबरें बाहर नहीं आने दीं।