आपदा में अवसर खोजते राष्ट्र सेठियों के कारकून

भारत में निजी एयर लांइस का डूबने का  इतिहास उतना ही पुराना जितनी हमारी निजीकरण उम्र अभी कुछ साल पहले तक ‘ जेट एयर ‘ नाम की एयरलाइंस नम्बर एक पर चलती थी । एक हफ्ते में ही बंद हो गई कि मालिक नरेश गोयल और उनकी पत्नी को ईडी ने गंभीर आरोपों में जेल में डाल दिया । बड़ा कारोबार झटके में खत्म हो गया ।
विजय माल्या या मलाया की किंगफ़िशर एयरलाइन्स कितनी जोर से उड़ी थी । लाल छोटी पोशाकों में सुदर्शन व्योम कन्यायें और पहली बार भारतीय यात्रियों को सपना दिखाया मानो कि वर्जिन एटलांटिक्स आ गई हो । कई साल उड़ी और फिर कुछ ही हफ्तों में धडाम और माल्या उडनछू । आज तक देश उस निवेशक को फिर देख भी नहीं पाया ।
स्पाइसजेट एयरलाइंस तमिलनाडु के उद्यमियों ने बनाई , ठीक शुरुआत की और अधबीच लडखडा गई । मालिक अपना पैसा निकाल कर पुराने धंधे में लौट गये। आज नहीं तो कल बंद होगी , कब तक बचेगी ?
एक सस्ती एयरलाइन डेक्कन नाम से बनी उडी और चतुर कैप्टेन गोपीनाथ बेच कर निकल लिये । फिर नाम भी सुनाई नहीं दिया !
शेयर मार्केट के खिलाड़ी झुनझुनवाला ने अपने निजी पोर्टफ़ोलियो से इतना कमा लिया कि वे भी अकासा ( दरअसल आकाश शब्द का ही सप्रयास अग्रेजीकरण किया गया ) को उड़ा लें । जल्दी ही मालिक झुनझुनवाला महाप्रयाण कर गये और अब उनकी पत्नी उसे जैसे तैसे चला रहीं है ।
सहारा श्री कहलवाने वाले सुब्रत राय ने भी सहारा एयरलाइंस शुरु की थी । पैसा संदिग्ध था , गरीब का और नेताओं का तो काला धन । गरीब का चॉंप लिया वापिस नहीं किया तो दशकों बाद किसी ईमानदार जज ने रगड़ दिया । सुब्रत रॉय जेल में पड़े रहे और एयरलाइन जमीन पर आ गयी । औलाद पैसे लेकर विदेश भाग गई , सुब्रत राय की अंत्येष्टि में भी नहीं आई ।
मैं उन छोटी तमाम हवाई कंपनियों का जिक्र नहीं कर रहा जो आईं और चलीं गईं या कि एक दो सैक्टर पर छोटे जहाज उड़ा पा रहीं है जिनमें बड़ी कम्पनियों की दिलचस्पी भी नहीं है जैसे एयर अलायंस वग़ैरह ! ये कुल घंधे के एक प्रतिशत में ही सब सिमट जातीं है ।
सिर्फ़ जे आर डी टाटा की खडी की गई एयर इंडिया टिकी रही । पहले सरकार ने ले ली । हर सरकार के भ्रष्ट मंत्री अफसर उससे खाते व कुतरते रहे और जब दीवालिया होने की नौबत पर आ गई तो फिर से टाटा को सौंप दी गई । बहुधंधी टाटा समूह घाटा सह सकता है सो चलेगी ।
अब अवसर मिल गया है भारत में तेजी से विकसित हुई और कुल हवाई यात्रा का ६५% हिस्सा कब्जा कर चुकी इंडिगो की अल्पकालिक दृष्टि व कुप्रबंधन और सरकारी नीति के कारण कि भारत के आकाश में अब यह या तो न दिखे या कम दिखे ।
क्या भारत की यात्री विमानन सेवा अभिशप्त है या कि पैसे के साइफनिंग की शिकार या कि कभी सरकारों ने इस पर सोचा ही नहीं कि टिकाऊ नीति क्या हो सकती है ? सब कुछ बाजार के हवाले करने पर बड़ी पूंजी ही छोटे को मारती रहेगी ।
किसी की भी आपदा को अवसर मान अम्बानी अडाणी के अफसर तेजी से चर्चाओं में भिड़ गये हैं और यह सम्भव ही दिख रहा है कि अगले साल ही जियो एयरवेज़ और / या अडाणी के जहाज भारतीय हवाई अड्डों पर उतरते चढ़ते दिखें। कितने ही प्रमुख हवाई अड्डे अडाणी के पहले से ही हो चुके हैं तो अडाणी की एयरलाइंस को मुनाफे का अवसर ज्यादा रहेगा अम्बानी के मुकाबले या दोनों एक ही सत्ता स्त्रोत से आशीर्वाद लेकर उड़ चलें यानी एकाधिकार ( मोनोपॉली) का और मजबूत होना !
रेल की अधोसंरचना हमने ऐसी विकसित नहीं की कि तेज गति से कहीं पहुंच सकें जैसा कि चीन ने कर लिया जहॉं सभी ट्रैनें बुलेट की रफ्तार से चल रहीं हैं और खाली नहीं । वहॉं भी करोड़ो लोग रोज व्यवस्थित यात्रा करते हैं ट्रैनों से ही ।
भारत के नेताओं को अभी किसी भी क्षेत्र पर गंभीरता से सोचने व तय करने का वक्त ही नहीं है । अपवादों को छोडकर अफसर सभी मूर्ख हैं या बेहद बेईमान । अभी नेता चुनाव लड लें , जीतने की हविश पूरी कर लें और अफसर सब अरबपति खरबपति हो जायें फिर देखा जायेगा लेकिन तब तक दुनिया कहॉं पहुंच चुकी होगी और हम कितने फिसड्डी ?
 आईटीएम की पूर्व चांसलर समाजवादी विचारक पूर्व मंत्री  रमाशंकर सिंह के लेख के एडिट साथ