तुम्हें देखकर आज अफसोस होता है। कभी तुम आंदोलन थे, आज तुम मीटिंग हो गए हो। कभी तुम्हारे पोस्टरों में देश बोलता था, अब बस नेता बोलते हैं। गांधी तुम्हारे अपने थे, फिर भी तुम उनसे सबसे ज़्यादा दूर हो गए।
जो आदमी तुम्हारा जल, जीवन, हवा सब था – उसे तुमने सिर्फ फोटो में कैद कर दिया। आरएसए, ने गांधी का इस्तेमाल कर लिया, और तुम बस ट्विटर पर नाराज़ी जताते रह गए कि “वो हमारे गांधी को चुरा ले गए।” पर सच ये है कि, गांधी को किसी ने नहीं चुराया, तुमने खुद छोड़ दिया। उन्होंने गांधी को अपना “ब्रांड” बना लिया, और तुमने गांधी को “पार्टी चिन्ह” बना दिया। सत्ता में आते ही गांधी के नाम से स्वच्छता अभियान छेड़ दिया।
नेहरू। जिसने इसरो, आईआईटी , एम्स जैसी नींव रखी, जिसने कहा था – “विज्ञान हमारे भविष्य की भाषा होगी” आज गांव में बच्चे उसका नाम सुनते हैं तो कोई कहता है “वो जिसने गलती की थी।” क्यों? क्योंकि तुमने नेहरू का बचाव नहीं किया, तुमने उन्हें समझाया नहीं। तुम्हें डर लगा कि कहीं कोई “व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी वाला” ताना न मार दे। नेहरू की सोच तो आसमान जैसी थी, मगर तुमने उसे पोस्टर से आगे नहीं बढ़ाया।
और इंदिरा… जिसने पाकिस्तान को दो टुकड़ों में तोड़ा, जिसने दुनिया के सामने भारत की ताक़त दिखाई, आज गांवों में उनका नाम लोग “नसबंदी” से जोड़ते हैं। RSS और BJP ने उनके खिलाफ जो कहानी फैलाई, वो हर चौपाल तक पहुंची। तुम्हारी कहानी कभी गांव तक पहुंची ही नहीं। तुमने बस सोचा कि लोग खुद समझ लेंगे। लेकिन, लोग खुद नहीं समझते, उन्हें कोई जाकर समझाता है। वो काम तुमने नहीं किया।
सोनिया… जिन्होंने इस देश के लिए अपनी पहचान छोड़ दी, जो चाहतीं तो प्रधानमंत्री बन सकती थीं, मगर नहीं बनीं, उनका त्याग भी तुमने कभी लोगों तक नहीं पहुंचाया। आज गांव में कोई कह देता है “इटली वाली देश लूटने आई थी” और तुम चुप रह जाते हो। तुम्हारे पास जवाब नहीं, क्योंकि तुमने कभी कहानी सुनाई ही नहीं।
राजीव… जिसने कंप्यूटर और इंटरनेट की सोच भारत को दी, वो भी तुम्हारे प्रचार का हिस्सा नहीं बना। तुम्हारे विरोधी झूठ बोलते गए, और तुम चुपचाप सहते रहे। तुमने अपने नेताओं को सिर्फ फ्रेम में रखा, उनके विचारों को कभी ज़िंदा नहीं रखा।
नेहरू, इंदिरा, गांधी, राजीव, सबको तुमने माला पहना दी, लेकिन उनकी बातों को दफ़न कर दिया।
आज जनता के बीच तुम्हारी छवि एक थकी हुई, बीती हुई कहानी जैसी हो गई है। लोग तुम्हें याद तो करते हैं, मगर उम्मीद नहीं करते। क्योंकि तुम खुद उम्मीद करना छोड़ चुके हो।
तुम अब गांधी की संतान नहीं, उनकी तस्वीर की रखवाली कर रहे हो।
तुम अब विचार नहीं, परंपरा बन गए हो। और जब राजनीति परंपरा बन जाए, तो सत्ता उसे “श्रद्धांजलि” देती है, वोट नहीं।
अगर सच में लौटना है, तो गांधी को फिर से समझो, नेहरू को गांव में ले जाओ, इंदिरा को फिर से गर्व से याद करो, और राजीव के सपनों को आज के युवाओं तक पहुंचाओ। नारा नहीं चाहिए अब, सच्चाई चाहिए। लोगों को दिखाओ कि तुम अब भी वही कांग्रेस हो, जो सत्ता के लिए नहीं, समाज के लिए बनी थी। वरना, एक दिन इतिहास किताबों में तुम्हें पढ़ाएगा, और बच्चे पूछेंगे – “कांग्रेस क्या होती थी?”
आज भाजपा गांव तक पहुंच गई है, तुम्हारे पास उसका तोड़ क्या है? कोई गांव की औरत मोदी के दिए गए लैट्रिन रूम से निकल कर मोदी के दिए नल में नहा कर, मोदी के दिए सिलेंडर से खाना बना रही है, तो उसका क्या इलाज़ है तुम्हारे पास।राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ रसोई तक घुस चुका है।
ख़त लिखने वाला लड़का।
चाय इश्क़ और राजनीति।

